मन का महफ़िल-04-Oct-2023
कविता -मन का महफ़िल
महफिल के वे शब्द
"तुम मेरे हो"
आज भी याद आते हैं ,
गीतों के सरगम
मन को छू जाते हैं
रह-रह कर सताते हैं
दिल की धड़कन
बढ़ बढ़ जाते हैं
वही सजावट बनावट
नैनों में छपा चेहरा
जिसके लिए मैं
देता था पहरा
बसती है आज भी
सदा सदा के लिए
मन के इस महफिल में
मेरे लिए।
रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी
hema mohril
05-Oct-2023 09:45 AM
Best poem
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Punam verma
05-Oct-2023 08:19 AM
Nice
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Gunjan Kamal
04-Oct-2023 08:51 PM
👏👌
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